यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काड्क्षति । शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्य: स मे प्रिय: ।।17।।
जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्ति युक्त पुरुष मुझको प्रिय है ।।17।।
He who neither rejoices nor hates, nor grieves, nor desires and who renounces both good and evil actions and is full of devotion, is dear to me. (17)