उपर्युक्त प्रकार से भगवान् की भक्ति करने वाले को भगवान् की प्राप्ति होती है, दूसरों को नहीं होती – इस कथन से भगवान् में विषमता के दोष की आशंका हो सकती है। अतएव उसका निवारण करते हुए भगवान् कहते हैं-
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: । ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ।।29।।
मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; परन्तु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।।29।।
I am eually present in all beings; there is none hateful or dear to me. They, however, who devoutly worship me abide in me; and I too stand revealed in them. (29)