Gita 2:48

Gita Chapter-2 Verse-48

प्रसंग-


इस प्रकार कर्मयोग की प्रक्रिया बतलाकर अब सकाम भाव की निन्दा और समभाव रूप बुद्धि योग का महत्त्व प्रकट करते हुए भगवान् अर्जुन[1] को उसका आश्रय लेने के लिये आज्ञा देते हैं-


योगस्थ: कुरु कर्माणि संग्ङंत्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ।।48।।




हे धनंजय[2] ! तू आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है ।।48।।


Arjuna, perform your duties established in Yoga, renouncing attachment, and eventempered in success and failure; envenness of temper is called yoga.(48)




Verses- Chapter-2

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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।