Gita 2:51

Gita Chapter-2 Verse-51

प्रसंग-


भगवान् ने कर्मयोग के आचरण द्वारा अनामय पद की प्राप्ति बतलायी; इस पर अर्जुन[1] को यह जिज्ञासा हो सकती है कि अनामय परम पद की प्राप्ति मुझे कब और कैसे होगी ? इसके लिये भगवान् दो श्लोकों में कहते हैं-


कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्ता मनीषिण: ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् ।।51।।




क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानी जन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्याग कर जन्म रूप बन्धन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं ।।51।।


For wise men possessing an equiposied mind, renouncing the fruit of from the shackles of birth, attain the blissful supreme state. (51)




Verses- Chapter-2

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Chapter
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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।