Gita 2:10

Gita Chapter-2 Verse-10

प्रसंग-


अर्जुन[1] को अधिकारी समझकर उसके शोक और मोह को सदा के लिये नष्ट करने के उद्देश्य से भगवान् पहले नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचन पूर्वक सांख्ययोग की दृष्टि से भी युद्ध करना कर्तव्य है, ऐसा प्रतिपादन करते हुए सांख्यनिष्ठा का वर्णन करते हैं-


तमुवाच हृषीकेश: प्रहसन्निव भारत ।
सेनयोरूभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: ।।10।।




हे भरतवंशी धृतराष्ट्र[2] ! अन्तर्यामी श्रीकृष्ण[3] महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले ।।10।।


Then, O Dhrtarastra, sri Krishna, as if smiling, addressed the following words to sorrowing Arjuna, in the midst of the two armies. (10)




Verses- Chapter-2

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Chapter
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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे। गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र। ये पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने थे।
  3. 'Gita' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।