Gita Govinda -Jayadeva 87

Gita Govinda -Shri Jayadeva Gosvami

Act One : sämoda dämodaraù

The Delighted Captive of Love

Scene Three

Song 3

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उन्मद-मदन-मनोरथ-पथिक-वधू-जन-जनित-विलापे ।
अलिकुल-संकुल-कुसुम-समूह-निराकुल-वकुल-कलापे
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... ॥29॥


मृगमद-सौरभ-रभसवशम्बद नवदलमाल-तमाले।
युवजन-हृदय-विदारण-मनसिज-नखरुचि-किंशुकजाले
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... ॥30॥


मदन-महीपति-कनक-दण्डरुचि-केशर-कुसुम-विकासे।
मिलित-शिलीमुख-पाटल-पटल-ड्डत-स्मर-तूण-विलासे
विहरति हरिरिह सरस वसन्ते.... ॥31॥

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References and Context