Gita Govinda -Jayadeva 64

Gita Govinda -Shri Jayadeva Gosvami

Act One : sämoda dämodaraù

The Delighted Captive of Love

Scene Two

Song 2

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अमल-कमल-दललोचन! भव मोचन।
त्रिभुवन भवन-निधान!
जय जय देव हरे ॥21॥
जनक-सुता-कृत-भूषण! जितदूषण!
समर-शमित-दशकण्ठ!
जय जय देव हरे ॥22॥
अभिनव-जलधर-सुन्दर! धृतमन्दर!
श्रीमुखचन्द्र-चकोर!
जय जय देव हरे ॥23॥
तव चरणे प्रणता वयम् इति भावय।
कुरु कुशलं प्रणतेषु,
जय जय देव हरे ॥24॥
श्रीजयदेवकवेरिदं कुरुते मुदम्।
मंगलमुज्ज्वलगीतम्
जय जय देव हरे ॥25॥
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References and Context