Gita Govinda -Jayadeva 63

Gita Govinda -Shri Jayadeva Gosvami

Act One : sämoda dämodaraù

The Delighted Captive of Love

Scene Two

Song 2

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श्रितकमलाकुच मण्डल! धृत-कुण्डल!
कलित-ललित-वनमाल!
जय जय देव हरे ॥17॥ ध्रुवम्॥
दिनमणि-मण्डल-मण्डन! भवखण्डन!
मुनिजन-मानस-हंस!
जय जय देव हरे ॥18॥
कालिय-विषधर-गञ्जन! जनरञजन!
यदुकुल-नलिन-दिनेश!
जय जय देव हरे ॥19॥
मधु-मुर-नरक-विनाशन! गरुड़ासन!
सुरकुल-केलि-निदान!
जय जय देव हरे ॥20॥
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References and Context