Gita 17:12

Gita Chapter-17 Verse-12

प्रसंग-


अब राजस यज्ञ के लक्षण बतलाते हैं-


अभिसंधाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् ।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम् ।।12।।



परंतु हे अर्जुन[1] ! केवल दम्भाचरण के लिये अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान ।।12।।

That sacrifice; however, which is offered for the sake of mere show or even with an eye to its fruit, know it to be Rajasika, Arjuna. (12)




Verses- Chapter-17

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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।