Gita 6:39

Gita Chapter-6 Verse-39

प्रसंग-


अर्जुन[1] ने यह बात पूछी थी कि वह योग से विचलित हुआ साधक उभय भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता? भगवान् अब उसका उत्तर देते हैं-


एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: ।
त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्रुपपद्यते ।।39।।



हे श्रीकृष्ण[2] ! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिये आप ही योग्य हैं, क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना सम्भव नहीं है ।।39।।

Krishna, it behoves you to slash this doubt of mine completely; for none other than you can be found, who can tear this doubt. (39)




Verses- Chapter-6

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Chapter
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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. 'Gita' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।