इस प्रकार तीन श्लोकों में कर्मों को सावधानी के साथ न करने और उनका त्याग करने के कारण होने वाले परिणाम का अपने उदाहरण से वर्णन करके, लोकसंग्रह की दृष्टि से सबके लिये विहित कर्मों की अवश्य-कर्तव्यता का प्रतिपादन करने के अनन्तर अब भगवान् उपर्युक्त लोक संग्रह की दृष्टि से ज्ञानी को कर्म करने के लिये प्रेरणा करते हैं-
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् ।, संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमा: प्रजा: ।।24।।
इसलिये यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जायँ और मैं संकरता करने वाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूँ ।।24।।
If I cease to act, these worlds will perish nay, I should prove to be the cause of confusion, and of the destruction of these people.(24)