Gita 2:38

Gita Chapter-2 Verse-38

प्रसंग-


यहाँ तक भगवान् ने सांख्य योग के सिद्धान्त से तथा क्षत्रिय धर्म की दृष्टि से युद्ध का औचित्य सिद्ध करके अर्जुन[1] को समतापूर्वक युद्ध करने के लिये आज्ञा दी। अब कर्मयोग के सिद्धान्त से युद्ध का औचित्य बतलाने के लिये कर्मयोग के वर्णन की प्रस्तावना करते हैं-


सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभो जयाजयौ ।
ततो यूद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ।।38।।




जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दु:ख को समान समझ कर, उसके बाद युद्ध के लिये तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा ।।38।।


Treating alike victory and defeat, gain and loss, pleasure and pain, get ready for the fight; then, fighting thus you will not incur sin.(38)




Verses- Chapter-2

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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।