Gita 16:6

Gita Chapter-16 Verse-6

प्रसंग-


इस अध्याय के प्रारम्भ में और इसके पूर्व भी दैवी-सम्पदा का विस्तार से वर्णन किया गया, परंतु आसुरी-सम्पदा का वर्णन अब तक बहुत संक्षेप से ही हुआ। अतएव आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों के स्वभाव और आचार-व्यवहार का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिये अब भगवान् उसको प्रस्तावना करते हैं-


द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च ।

दैवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु ।।6।।


हे अर्जुन[1] ! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला। उनमें से दैवी प्रकृति वाला तो विस्तारपूर्वक कहा गया, अब तू आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य-समुदाय को भी विस्तारपूर्वक मुझसे सुन ।।6।।

There are only two types of men in this world, Arjuna, the one possessing a divine nature and the other possessing a demoniac disposition. Of these, the type possessing a divine nature has been dealt with at length; now hear in detail from Me about the type possessing demoniac disposition.(6)




Verses- Chapter-16

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Chapter
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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।