Gita 8:8

Gita Chapter-8 Verse-8

प्रसंग-


पाँचवे श्लोक में भगवान् का चिन्तन् करते-करते मरने वाले मनुष्यों की गति का वर्णन करके अर्जुन[1] के सातवें प्रश्न का संक्षेप में उत्तर दिया गया, अब उसी प्रश्न का विस्तारपूर्वक उत्तर देने के लिये अभ्यास योग के द्वारा मन को वश में करके भगवान् के 'अधियज्ञ' रूप का अर्थात् सगुण निराकार दिव्य अव्यक्त रूप का चिन्तन करने वाले योगियों की अन्तकालीन गति का तीन श्लोकों द्वारा वर्णन करते हैं


अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ।।8।।



हे पार्थ[2] ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश स्वरूप दिव्य पुरुष को अर्थात् परमेश्वर को ही प्राप्त होता है ।।8।।

He who meditates on the Supreme Personality of Godhead, his mind constantly engaged in remembering Me, undeviated from the path, he, O Partha , is sure to reach Me. ।।8।।




Verses- Chapter-8

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Chapter
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References and context

  1. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।