Gita 6:40

Gita Chapter-6 Verse-40

प्रसंग-


योगभ्रष्ट पुरुष की दुर्गति तो नहीं होती, फिर उसकी क्या गति होती है । यह जानने की इच्छा होने पर भगवान् कहते हैं-


पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते ।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ।।40।।



श्रीभगवान् बोले-


हे पार्थ[1] ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही। क्योंकि हे प्यारे ! आत्मोद्वार के लिये अर्थात् भगवत्प्राप्ति के लिये कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता ।।40।।

Shri Bhagavan said:


Dear Arjuna, there is no fall for him either here or herafter. For none who strives for self-redemption (i.e., God-realization) ever meets with evil destiny. (40)




Verses- Chapter-6

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Chapter
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References and context

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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