Gita 6:35

Gita Chapter-6 Verse-35

प्रसंग-


भगवान् ने मन को वश में करने के उपाय बतलाये। यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि मन को वश में न किया जाय तो क्या हानि है? इस पर भगवान् कहते हैं-


असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गुह्राते ।।35।।



श्रीभगवान् बोले-


हे महाबाहो[1] ! नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है; परंतु हे कुन्ती[2] पुत्र अर्जुन[3] ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है ।।35।।

Shri Bhagavan said:


The mind is restless no doubt; and difficult to curb, Arjuna; but it can be brought under control by repeated practice (of meditation) and by the exercise of dispassion, O son of Kunti.(35)




Verses- Chapter-6

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Chapter
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References and context

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।
  2. ये वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। Mahabharata में महाराज पाण्डु की ये पत्नी थीं।
  3. Mahabharata के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।