Gita 18:45

Gita Chapter-18 Verse-45

प्रसंग-


इस प्रकार चारों वर्णों के स्वाभाविक कर्मों को वर्णन करके अब भक्ति युक्त कर्मयोग का स्वरूप और फल बतलाने के लिये, उन कर्मों का किस प्रकार आचरण करने से मनुष्य अनायास परम सिद्धि को प्राप्त कर लेता है- यह बात दो श्लोकों में बतलाते हैं-


स्वे स्वे कर्मण्यभिरत: संसिद्धिं लभते नर: ।
स्वकर्मनिरत: सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु ।।45।।



अपने-अपने स्वाभाविक कर्मों में तत्परता से लगा हुआ मनुष्य भगवत्प्राप्ति रूप परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है। अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार से कर्म करके परम सिद्धि को प्राप्त होता है, उस विधि को तू सुन ।।45।।

Keenly devoted to his own natural duty, man attains the highest perfection in the shape of God-Realization. hear the mode of performance whereby the man engaged in his inborn duty reaches that highest consummation. (45)




Verses- Chapter-18

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